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समाजवादी खेमे में फिर से छिड़ी जंग, आमने-सामने आये दोनों गुट

देश के सबसे बड़े सियासी परिवार में म्यान से निकली तलवारें वापस जाने को तैयार नहीं दिखतीं। एक बार फिर अखिलेश और मुलायम आमने सामने आ खड़े हुए हैं। 28 तारीख को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दल के निर्वाचित विधायकों की बैठक पार्टी दफ्तर में पहले से ही बुला रखी थी। अब पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने भी पार्टी विधायकों को 29 मार्च को बुला लिया है। जाहिर है, पार्टी में इससे एक बार फिर रार के आसार पैदा हो गये हैं।

अलग-अलग बुलाई बैठक
मंगलवार यानी 28 मार्च को अखिलेश यादव ने पार्टी के निर्वाचित विधायकों की बैठक बुला रखी है। लेकिन इसी बीच 29 मार्च को पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी नवनिर्वाचित विधायकों से मिलने का खत भेज चुके हैं। जाहिर है, दोनों खेमों की अलग-अलग बैठक इशारा कर रही है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है।

फिर से धधकेगी आग
खबर आ रही है कि पार्टी के राषट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दरअसल पार्टी के विधान मंडल दल का नेता चुनने के लिए बैठक बुलाई है। जबकि नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव 29 मार्च की बैठक के जरिये यह जानना चाहते हैं कि अब आगे का सफर पार्टी किस राह पर चले। सूत्र बताते हैं कि 29 मार्च की बैठक के लिए मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को कान्फीडेंस में नहीं लिया है। इससे माना जा रहा है कि यह बैठक फिलहाल बुझती दिख रही कलह की आग में घी का काम कर सकती है।

दबाव की मुलायम रणनीति
सूत्र बताते हैं कि मुलायम की यह बैठक दरअसल अखिलेश पर दबाव बनाने की कोशिश का हिस्सा है। मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि विधान सभा अध्यक्ष पद के लिए अखिलेश, शिवपाल यादव या फिर आजम खान के नाम को हरी झंडी दें। मगर सूत्र बताते हैं कि अखिलेश नहीं चाहते कि पार्टी के भीतर उनके इन बुरे दिनों में कोई नया मोर्चा खुले, लिहाजा वो रामगोविंद चौधरी के नाम पर दांव लगा रहे हैं। जो अखिलेश के बेहद करीबी हैं। गौरतलब है कि सपा के नवनिर्वाचित विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष चुनने का अधिकार राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश को दे रखा है, जो शायद मंगलवार को फाइनल हो जाये।

अपने पर भरोसा
बलिया के बांसडीह से विधायक रामगोविन्द चौधरी पर नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अखिलेश सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। पुराने समाजवादी रामगोविन्द बीते दिनों दोनों गुटों की लड़ाई में अखिलेश के साथ डटकर खड़े हुए थे। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अखिलेश सबसे ज्यादा भरोसा रामगोविन्द पर ही कर रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष 30 सितम्बर से पहले चुना जाना है। लिहाजा, अगले कुछ महीनों के दरमियान समाजवादी खेमे में सिरफुटव्वल तेज होने के आसार हैं।


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